संत श्री देवारामजी

श्री राजऋषि योगीराज ब्रह्राचारी ब्रह्रालीन पुजनीय संत श्री श्री 1008 श्री राजारामजी महाराज के समाधि के बाद आपके प्रधान शिष्य श्री राजऋषि योगीराज ब्रह्राचारी ब्रह्रालीन पुजनीय संत श्री श्री 1008 श्री देवारामजी महाराज 

को आपके उपदेशो का प्रचार व प्रसार करने के उद्देश्य से गद्दी पर बिठाया और महंत श्री की उपाधि मिल गई ! महंत श्री देवरामजी ने अपने गुरुभाई श्री लच्छीरामजी ,श्री गणेशरामजी और श्री शंभुरामजी के साथ भ्रमण करते हुए श्री राजारामजी महाराज के उपदेशो को संसारियों तक पहुँचाने का प्रयत्न करने में अपना जीवन लगा दिया ! श्री गुरुदेव राजारामजी के शुरू किये हुए काम को पूरा करने में अपना जीवन लगाकर अथक प्रयत्न करते रहे ! जिसके लिए आंजना पटेल समाज सदा आपका ऋणी रहेगा ! राजस्थान के जिला जोधपुर की वर्तमान लुणी तहसील के गांव दुन्धाड़ा में काग गोत्रधारी एक साधारण कलबी किसान हरारामजी की धर्मपत्नी श्रीमती धनीबार्इ ने श्रावण सुदी 14 संवत 1972 को एक शिशु को जन्म दिया ,जिसका नाम बड़े प्यार से देवाराम रखा गया । धनीबार्इ जिला जालौर की आहोर तहसील के गांव बरवा के खीमाराम जी बग की इकलौती संतान थी । हराराम जी के पिताश्री तुलछाराम जी पहले बाड़मेर के गांव रामपुरा के खेड़ा में निवास करते थे । स्वाभिमानी तुलछाराम जी का किसी बात को लेकर रामपुरा के सामन्तो से मन मुटाव हो गया , जिसके बाद उन्होने वहां रहना उचित नही समझा और सदैव के लिए रामपुरा को छोड़कर दुन्धाड़ा में आकर बस गए थे । दुन्धाड़ा मे इस परिवार ने अपने सदाचरण , सदव्यवहार और श्रम के बल पर अपना एक विशेष स्थान बना दिया था । रामपुरा से पलायन कर आने वाला यह परिवार अपने बुते दुन्धाड़ा मे प्रतिष्ठित हो गया । हराराम जी और धनीबार्इ को परमात्मा ने दो पुत्र रत्न पहले ही वरदान स्वरूप कर रखे थे जिनके नाम क्रमष: गुलाराम और रावतराम था , ये दोनो ही देवाराम से बड़े थे । चूकि देवाराम सबसे छोटे थे इसलिए उन्हे पूरे परिवार का भरपूर प्यार मिलता था । बालक देवाराम को अपने भार्इयो के साथ तरह तरह के खेल खेलना और अपनी माता की गोद मे बैठना बहुत अच्छा लगता था । जब भी मौका मिलता देवाराम धनीबार्इ की गोद मे जाकर बैठ जाते और माता का प्यार पाते । अनेक बार ऐसा भी होता जब उन्हे कोर्इ बहुत जरूरी काम करना होता था और देवाराम उनकी गोद मे जाकर बैठ जाते थे । अपने पिता हराराम जी के कंधे पर चढ़ कर बैठ जाना और उनसे अपने साथ खेलने की जिद करना देवाराम को बहुत प्रिय था । पिता को भी अपने बेटे की सरार्ते अच्छी लगती थी । एक दिन देवा ने मिटटी खा ली तो मां ने उन्हे फटकार लगार्इ और हल्का सा चपत गाल पर भी जड़ दिया । इस बात पर देवा पूरे दिन रोते रहे , न उन्होने कुछ खाया और न पिया बस रोते रहे । संध्याकाल में मा धनीबार्इ ने सुबकते हुए देवा को अपनी गोद मे उठाकर अपनी छाती से लगा लिया । ऐसा इसलिए हुआ क्योकि देवा बहुत ही भावुक ए वं संवेदनशील थे ।

Comments

Popular posts from this blog

आँजना चौधरी सामाज में जन्मे गुजरात मेहसाना जिले के पालड़ी गाँव के बने पायलट वीशाल चौधरी मुख्यमंत्रीओ से लेकर नरेन्द्र मोदी जी भी को करा चुके है आसमान की सैर

ऐसा किया हुआ कि अचानक की जालोर सांसद देवजी पटेल के सादगी जीवनी फोटो वायरल होने लगे कारण जानकर कांग्ग्रेस हैरान में पड़ जाहेगी

मृत्यु भोज को आख़िर आपनी समाज मे बंद कराना ही होगा :- सन्त दयाराम महाराज

प्रेरणादायक उस समय की :- राजस्थान के जालोर जिले के छोटे से गाँव के 2002 के iit-jee के टॉपर डूंगराराम चौधरी की

साध्वी भगवती बाईं हुआ भव्य स्वागत गुजरात में

देखें झलकिया:- बहुत ही एेतीहासीक आँजणा समाज मे मिला फैसला हाईकोर्ट जोधपुर , गंगा प्रदेश की पहली ट्रांसजेंडर जो पुलिस महकमे में देंगी सेवाएं

शिकारपुरा के राजारामजी आश्रम के गादीपती महंत श्री श्री 1008 दयाराम महाराज को मुख्यमंत्री ने विधायक जोगराम जी के साथ भेजा सन्देश पत्र, किया लिखा है इस पत्र में आप भी पढ़िये

तो इसलिए बजाते हैं मंदिरों घंटा या घंटी? संत श्री दयाराम महाराज

जालौर के भीनमाल में आज आंजणा चौधरी समाज के एक लाख लोग एकत्रित