मृत्यु भोज को आख़िर आपनी समाज मे बंद कराना ही होगा :- सन्त दयाराम महाराज
भागवत गीता में भगवान श्रीकृष्ण कहते है- आत्मा का नाश नहीं हो सकता. आत्मा केवल युगों-युगों तक शरीर बदलती है। आत्मा का देह त्याग करने के बाद भौतिक जीवन में बहुत से संस्कार किए जाते है. जिनमें से एक है मृत्युभोज। मृत्युभोज न करने के पीछे महाभारत में एक कथा बताई गई है।
महाभारत का युद्ध होने को था, अतः श्री कृष्ण ने दुर्योधन के घर जा कर युद्ध न करने के लिए संधि करने का आग्रह किया । दुर्योधन द्वारा आग्रह ठुकराए जाने पर श्री कृष्ण को कष्ट हुआ और वह चल पड़े, तो दुर्योधन द्वारा श्री कृष्ण से भोजन करने के आग्रह पर कृष्ण ने कहा कि "सम्प्रीति भोज्यानि आपदा भोज्यानि वा पुनैः"
अर्थात जब खिलाने वाले का मन प्रसन्न हो, खाने वाले का मन प्रसन्न हो, तभी भोजन करना चाहिए। लेकिन जब खिलाने वाले एवं खाने वालों के दिल में दर्द हो, वेदना हो, तो ऐसी स्थिति में कदापि भोजन नहीं करना चाहिए।"
हिन्दू धर्म में मुख्य 16 संस्कार बनाए गए है। जिसमें प्रथम संस्कार गर्भाधान एवं अन्तिम तथा 16वां संस्कार अन्त्येष्टि है। किसी भी धर्म ग्रन्थ में मृत्युभोज का विधान नहीं है।
बल्कि महाभारत के अनुशासन पर्व में लिखा है कि मृत्युभोज खाने वाले की ऊर्जा नष्ट हो जाती है।जिसके बाद वो इंसान को अपने जीवनी के बारे में कोई भाविष्यता नही दिखती है बावजी राजारामजी भगवान ये सपना हर हाल में आज की युवा पिढी सच में साबित करके ही रहेगी में आज के नोजवानों को हाथ जोड़कर विनंती अपिर्त करता हु की मृत्यु भोज बंद करवाने के लिए आगे आये और मुजे ओर अपनी समाज और आज युवा नोजवानो पर पूर्ण विशवास है कि ये मृत्यु भोज बंद करवाने के लिए आगे जरूर जरूर आहेंगे ओर ये गुरु भगवान का सपना सच साबित कराके ही रहेंगें
जय राजेशवर भगवान की
जय श्री राजेश्वर भगवान
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