यह कैसा मृत्युभोज है ? सन्त दयारामजी महाराज
य ह कैसा मृत्युभोज है ??? जिस भोजन को रोते हुए बनाया जाता हैजिस भोजन को खाने के लिए रोते हुए बुलाया जाता हैं जिस भोजन को आँसू बहाते हुए खाया जाता हैं उस भोजन को मृत्युभोज कहा जाता हैजिस परिवार मे विपदा आई हो उसके साथ इस संकट की घड़ी मे जरूर खडे़ हो और तन,मन,और घन से सहयोग करे और मृतक भोज का बहिस्कार करे भोजन तभी करना चाहिएजब खिलाने वाले का मन प्रसन्न हो, खाने वाले का मन प्रसन्न हो। लेकिन जब खिलाने वाले एवं खाने वालों दोनो के दिल में दर्द हो, वेदना हो तो ऐसी स्थिति में कदापि भोजन नहीं करना चाहिए यह तेरहवी संस्कार समाज के चन्द चालाक लोगों के दिमाग की उपज हैकिसी भी धर्म ग्रन्थ में मृत्युभोज का विधान नहीं है मृत्युभोज खाने वाले की ऊर्जा नष्ट हो जाती है अर्थात मृत्युभोज शरीर के लिए ऊर्जावान नहीं है इसी लिए महापुरुषों ने मृत्युभोज का जोरदार ढंग से विरोध किया है जिस भोजन बनाने का कृत्य जैसे लकड़ी फाड़ी जाती तो रोकर आटा गूँथा जाता तो रोकर एवं पूड़ी बनाई जाती है तो रोकर यानि हर कृत्य आँसुओं से भीगा। यहाँ तक कि खाना खिलाने वाला खाना खिलाता है आंसू बहा कर और खाना खाने वाला भी खा